'भारत में लिथुआनियाई भाषा पढ़ाने का इरादा'
नवभारत टाइम्स| Jan 4, 2014, 01.00AM IST
यूरोपीय देश लिथुआनिया की विलनियस यूनिवर्सिटी की रुचि काफी पहले से भारत के समृद्ध प्राचीन दर्शन और धर्मग्रंथों में बनी रही। लेकिन लिथुआनिया पर सोवियत संघ का शासन कायम हुआ तो भारत सहित दूसरे देशों का प्राचीन अध्ययन रोक दिया गया। अब वहां फिर से प्राचीन भारतीय दर्शन को लेकर रुचि पैदा हुई है। विलनियस विश्वविद्यालय के ओरियंटल स्टडीज विभाग के निदेशक प्रफेसर हबील आडियस बेनोरियस कुछ उपनिषदों का लिथुआनियाई भाषा में अनुवाद कर रहे हैं। प्रस्तुत है विलनियस में प्रोफेसर हबील से हमारे राजनयिक संपादक रंजीत कुमार की बातचीत:
उपनिषदों का लिथुआनियाई में अनुवाद करने का विचार कैसे आया?
लिथुआनियाई और संस्कृत भाषा में काफी समानता है। संस्कृत के जरिये भारत और यूरोपीय देशों के बीच संपर्क विकसित हुआ है। यूरोप में लिथुआनिया सबसे प्राचीन भाषाओं में है। लेकिन सोवियत काल के दौरान भारत को लेकर लिथुआनिया में किसी भी तरह का अकादमिक अध्ययन रोक दिया गया। सोवियत संघ से आजादी के बाद हमने नब्बे के दशक में लिथुआनिया में भारत के प्राचीन और समकालीन विषयों को लेकर फिर पढ़ाई शुरू की। हमारे विभाग में 15 सीटें हैं। भारतीय अध्ययन और इसमें प्रवेश के लिए यहां के छात्रों में काफी होड़ लगी रहती है। करीब 70-75 आवेदन मिलते हैं जिनमें से हम सर्वश्रेष्ठ छात्रों को ही चुनते हैं।
संस्कृत और भारत के प्रति आप में लगाव कब पैदा हुआ?
शायद पिछले जन्म से ही यह लगाव मुझमें था। मैं 16 साल का ही था, तब से भारत और संस्कृत को पढ़ने और जानने की इच्छा पैदा हुई। तब लिथुआनिया पर सोवियत शासन था और ब्रेझनेव की कम्युनिस्ट क्रूरता का दौर था। तब किसी तरह की राजनीतिक गतिविधि की इजाजत नहीं थी। तब भारत ने मुझे दार्शनिक विकल्प प्रदान किया। हमने अहिंसक विरोध के बारे में सुना हुआ था। मेरे पिता तो मुझे कैथोलिक पादरी बनाना चाहते थे, लेकिन मैंने संस्कृत पर ही ध्यान दिया। हमने भारत के ज्योतिष शास्त्र के बारे में भी अध्ययन किया। हमारी प्राचीन भारतीय विज्ञान में भी दिलचस्पी रही है। लिथुआनिया को 1993 में रूस से आजादी के बाद यहां के लोगों ने भारत की ओर ध्यान दिया। भारतीय योग, आयुर्वेद और समसामयिक भारत को लेकर यहां काफी आकर्षण पैदा हुआ है।
मैं नब्बे के दशक में चार साल तक कोलकाता में रहा और वहां मैंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन किया। अब हमारे यहां विलनियस विश्वविद्यालय में भारत अध्ययन के सात शिक्षक हैं। वे वेद, प्राचीन ग्रंथ, संस्कृति, दर्शन और भारतीय सिनेमा के अलावा संस्कृत और हिंदी भी पढ़ा रहे हैं। यानी भारत के प्रति गहरा लगाव वहां देखने को मिलता है। लिथुआनिया में भारत के प्रति जैसा लगाव है, उसके मद्देनजर यहां भारत को जल्द ही अपना दूतावास खोलना चाहिए। आखिरकार लिथुआनिया यूरोपीय संघ का एक सदस्य देश है। लेकिन हमें खुशी हुई कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में इस साल से लिथुआनिया और बाल्टिक गणराज्यों के लिए एक अलग विभाग खोल दिया गया है। इससे भारत और लिथुआनिया में रिश्ते मजबूत करने में मदद मिलेगी।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में आपकी रुचि कैसे बनी?
ज्योतिष शास्त्र भारत की सबसे समृद्ध और जीवंत विद्या रही है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र की एक लाख से अधिक पांडुलिपियां दुनिया भर में मौजूद हैं। 19वीं सदी के अंत से ही भारतीय धर्म और विज्ञान के पश्चिमी इतिहासविद और शास्त्रीय भाषाविदों जैसे एच कर्ण, ए वेबर, थिबोट आदि ने लंबे अर्से से संस्कृत के ज्योतिष ग्रंथों को संरक्षित और प्रकाशित करने की कोशिश की। इनके महत्व पर बराबर जोर दिया। तार्किक तौर पर केवल विज्ञान के इतिहासविदों ने ही भारतीय ज्योतिषीय विद्या की ओर देखने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने अपनी रुचि समसामयिक गणित और खगोल विज्ञान तक ही सीमित रखी। लंबे अर्से तक उन्होंने ज्योतिष विज्ञान के ऐतिहासिक विकास और विश्लेषण को इसे छद्म विज्ञान बताकर रोके रखा।
भारत में भी बहुत लोग ज्योतिष को अंधविश्वास मानते हैं। मैं इसी विषय पर शोध कर रहा हूं कि भारतीय ज्योतिष विज्ञान वास्तव में एक खास ब्रह्मांडीय दृष्टि पर आधारित है। वह मानवीय अनुभवों को मूल्य और अर्थ प्रदान करता है। मेरा शोध कार्य भारतीय ज्योतिष के ऐतिहासिक विकास और डिविनेशन पर है जो एक पारंपरिक ज्ञान है।
भारत पर अपना अध्ययन करते हुए आप दरअसल क्या करना चाहते हैं?
वास्तव में भारत को समझते हुए हम अपनी पहचान को ही समझना चाहते हैं। भारत और लिथुआनिया में गहरा बसा है। लिथुआनिया के लोग भारतीय आश्रमों में जाते हैं और अपने देश में आयुर्वेद अपना रहे हैं। दुर्भाग्य से हम यहां भारत के बारे में केवल बलात्कार की घटनाएं जान पाते हैं। भारत की समसामयिक राजनीति और सामाजिक विकास के बारे में हमें कुछ भी पढ़ने को नहीं मिलता है। हम चाहते हैं कि दोनों देशों के लोग एक दूसरे को नये सिरे से समझें और उनके प्राचीन स्वरूप व रिश्तों के बारे में जानें। लिथुआनियाई और संस्कृत में काफी समानता है। यूरोपीय भाषाओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण बात है। हमारा इरादा भारत में भी लिथुआनियाई भाषा पढ़ाने का है।
उपनिषदों का लिथुआनियाई में अनुवाद करने का विचार कैसे आया?
लिथुआनियाई और संस्कृत भाषा में काफी समानता है। संस्कृत के जरिये भारत और यूरोपीय देशों के बीच संपर्क विकसित हुआ है। यूरोप में लिथुआनिया सबसे प्राचीन भाषाओं में है। लेकिन सोवियत काल के दौरान भारत को लेकर लिथुआनिया में किसी भी तरह का अकादमिक अध्ययन रोक दिया गया। सोवियत संघ से आजादी के बाद हमने नब्बे के दशक में लिथुआनिया में भारत के प्राचीन और समकालीन विषयों को लेकर फिर पढ़ाई शुरू की। हमारे विभाग में 15 सीटें हैं। भारतीय अध्ययन और इसमें प्रवेश के लिए यहां के छात्रों में काफी होड़ लगी रहती है। करीब 70-75 आवेदन मिलते हैं जिनमें से हम सर्वश्रेष्ठ छात्रों को ही चुनते हैं।
संस्कृत और भारत के प्रति आप में लगाव कब पैदा हुआ?
मैं नब्बे के दशक में चार साल तक कोलकाता में रहा और वहां मैंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन किया। अब हमारे यहां विलनियस विश्वविद्यालय में भारत अध्ययन के सात शिक्षक हैं। वे वेद, प्राचीन ग्रंथ, संस्कृति, दर्शन और भारतीय सिनेमा के अलावा संस्कृत और हिंदी भी पढ़ा रहे हैं। यानी भारत के प्रति गहरा लगाव वहां देखने को मिलता है। लिथुआनिया में भारत के प्रति जैसा लगाव है, उसके मद्देनजर यहां भारत को जल्द ही अपना दूतावास खोलना चाहिए। आखिरकार लिथुआनिया यूरोपीय संघ का एक सदस्य देश है। लेकिन हमें खुशी हुई कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में इस साल से लिथुआनिया और बाल्टिक गणराज्यों के लिए एक अलग विभाग खोल दिया गया है। इससे भारत और लिथुआनिया में रिश्ते मजबूत करने में मदद मिलेगी।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में आपकी रुचि कैसे बनी?
ज्योतिष शास्त्र भारत की सबसे समृद्ध और जीवंत विद्या रही है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र की एक लाख से अधिक पांडुलिपियां दुनिया भर में मौजूद हैं। 19वीं सदी के अंत से ही भारतीय धर्म और विज्ञान के पश्चिमी इतिहासविद और शास्त्रीय भाषाविदों जैसे एच कर्ण, ए वेबर, थिबोट आदि ने लंबे अर्से से संस्कृत के ज्योतिष ग्रंथों को संरक्षित और प्रकाशित करने की कोशिश की। इनके महत्व पर बराबर जोर दिया। तार्किक तौर पर केवल विज्ञान के इतिहासविदों ने ही भारतीय ज्योतिषीय विद्या की ओर देखने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने अपनी रुचि समसामयिक गणित और खगोल विज्ञान तक ही सीमित रखी। लंबे अर्से तक उन्होंने ज्योतिष विज्ञान के ऐतिहासिक विकास और विश्लेषण को इसे छद्म विज्ञान बताकर रोके रखा।
भारत में भी बहुत लोग ज्योतिष को अंधविश्वास मानते हैं। मैं इसी विषय पर शोध कर रहा हूं कि भारतीय ज्योतिष विज्ञान वास्तव में एक खास ब्रह्मांडीय दृष्टि पर आधारित है। वह मानवीय अनुभवों को मूल्य और अर्थ प्रदान करता है। मेरा शोध कार्य भारतीय ज्योतिष के ऐतिहासिक विकास और डिविनेशन पर है जो एक पारंपरिक ज्ञान है।
भारत पर अपना अध्ययन करते हुए आप दरअसल क्या करना चाहते हैं?
वास्तव में भारत को समझते हुए हम अपनी पहचान को ही समझना चाहते हैं। भारत और लिथुआनिया में गहरा बसा है। लिथुआनिया के लोग भारतीय आश्रमों में जाते हैं और अपने देश में आयुर्वेद अपना रहे हैं। दुर्भाग्य से हम यहां भारत के बारे में केवल बलात्कार की घटनाएं जान पाते हैं। भारत की समसामयिक राजनीति और सामाजिक विकास के बारे में हमें कुछ भी पढ़ने को नहीं मिलता है। हम चाहते हैं कि दोनों देशों के लोग एक दूसरे को नये सिरे से समझें और उनके प्राचीन स्वरूप व रिश्तों के बारे में जानें। लिथुआनियाई और संस्कृत में काफी समानता है। यूरोपीय भाषाओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण बात है। हमारा इरादा भारत में भी लिथुआनियाई भाषा पढ़ाने का है।
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