Sunday, March 31, 2013

किस्मत पर भरोसा है तो मकाऊ चलें


किस्मत पर भरोसा है तो मकाऊ चलें

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आप क्या कभी गोवा गए हैं? अगर समुद्र तट के अलावा वहां की गलियों और पुराने गोवा में घूमने का अवसर निकाल पाए हों, वहां की इमारतें, सड़कें, चर्च और मंदिर याद हों तो मकाऊ में उनकी झलक आप महसूस करेंगे। भारत के पश्चिम में स्थित गोवा और चीन के दक्षिण पूर्व में स्थित मकाऊ में यह अद्भुत समानता उनके समान औपनिवेशिक अतीत के कारण है। भारत और चीन के इन प्रदेशों पर कभी पुर्तगालियों का राज था। दोनों ही जगह पुर्तगाली धर्म, भाषा और संस्कृति के अवशेष अभी तक बचे हुए हैं। मकाऊ में कुछ ज्यादा, क्योंकि उन्होंने पुर्तगाली अवशेष और संपर्क को पर्यटन के आकर्षण में बदल दिया है।
चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र
सदियों तक पुर्तगाल के अधीन रहने के बाद मकाऊ चीन को वापस मिल चुका है, लेकिन हांगकांग के तर्ज पर चीन ने इसे विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बना रखा है। समझौते के मुताबिक हांगकांग और मकाऊ की प्रशासनिक व्यवस्था में सुपुर्दगी के अगले पचास सालों तक कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए आर्थिक रूप से समृद्ध हांगकांग और मकाऊ में ‘एक देश, दो व्यवस्था’ की नीति के तहत ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की है। दोनों ही प्रदेशों से चीन को पर्याप्त आमदनी होती है और इन प्रदेशों के अमीर चीन की अर्थव्यस्था को मजबूत करते हैं।
कैसे पहुंचें
मकाऊ आने का सुगम मार्ग हांगकांग के रास्ते है। वैसे चीन के सीमांत शहर शनचन, क्वांगतुंग और लानचओ से भी मकाऊ पहुंचा जा सकता है, लेकिन उसके लिए पहले चीन जाना होगा। हांगकांग और मकाऊ जाने के लिए भारतीय नागरिकों को पहले से वीजा लेने की जरूरत नहीं पड़ती। हांगकांग एयरपोर्ट पर आसानी से वीजा मिल जाता है। हांगकांग से मकाऊ के लिए फेरी लेनी होती है। हांगकांग एयरपोर्ट से बंदरगाह तक बसें आती-जाती हैं। हांगकांग से मकाऊ की फेरी यात्रा का अपना आनंद है। नीले लहराते समुद्र पर फिसलती फेरी और दूर-दूर तक फैला पानी का साम्राज्य..  15-20 मिनट की दूरी से मकाऊ के आलीशान होटल झिलमिलाने लगते हैं। मकाऊ जैसे-जैसे नजदीक आता जाता है, वैसे-वैसे शहर की निशानियां स्पष्ट होने लगती हैं।
सांस्कृतिक- सामाजिक व्यवहार
मकाऊ में जेटी से बाहर निकलते ही रिक्शे पर ऊंघते रिक्शा चालकों को देख कर अजीब सा सुखद एहसास होता है। तीन पहियों की मनुष्यचालित यह सवारी अत्याधुनिक मकाऊ में सांस्कृतिक विरासत के तौर पर बचा कर रखी गई है। विदेशी यात्री कौतूहल से रिक्शे पर बैठने का आनंद लेते हैं। मकाऊ में मुख्य आबादी चीन मूल के नागरिकों की है। दूसरी जाति और राष्ट्रीयताओं के दस प्रतिशत लोग ही यहां रहते हैं। वैसे मकाऊ चीन का हिस्सा बन चुका है, लेकिन मुख्य भूमि चीन के नागरिकों को मकाऊ आने की आजादी नहीं मिली है। उन्हें विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।
भारतीय मूल के मकाऊ पर्यटन विभाग के कर्मचारी अलोरिनो नोरुयेगा ने रोचक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जो चीनी अपनी विपन्नता के कारण मकाऊ नहीं आ पाते, वे एक विशेष स्टीमर से मकाऊ को घेर रही नदी में दो घंटे की यात्रा करते हैं। वे दूर से मकाऊ की संपन्नता देखते हैं और उसकी आलीशान इमारतों की पृष्ठभूमि में अपनी तस्वीरें खिंचवाकर संतुष्ट हो लेते हैं। मकाऊ विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के आय का मुख्य स्रोत कैसिनो, होटल और पर्यटन हैं। हर साल लाखों विदेशी पर्यटक और यात्री यहां आते हैं। यहां के कैसिनो में 5 सेंट से लेकर करोड़ों डॉलर तक के दांव लगते हैं। पुरानी कहावत है कि जुआघर से हर जुआरी हार कर निकलता है। किसी रात कोई जीत गया तो अगली रात वह दोगुनी रकम हारता है। इसी दर्शन से मकाऊ के जुआघर आबाद हैं और यहां के कुछ होटलों में आप चौबीसों घंटे किस्मत का दांव चल सकते हैं। कहते हैं कि पिछले साल मकाऊ प्रशासन को इतनी आमदनी हुई कि उसने अपने प्रत्येक नागरिक को 6000 पताका (मकाऊ की करेंसी) दिए। एक पताका साढ़े सात रुपये के बराबर होता है। यह मकाऊ में ही मुमकिन है, क्योंकि वहां की कुल आबादी 549,200 है। भारत के मझोले और छोटे शहरों की भी आबादी इस से ज्यादा होती है।
कहॉ घूमें
मकाऊ कुल 29.2 वर्ग किलोमीटर इलाके में बसा है। तीन टापुओं के इस प्रदेश को यातायात के लिए पुलों से जोड़ा गया है। ज्यादातर पर्यटक और यात्री अत्याधुनिक मकाऊ की चकाचौंध में खो जाते हैं। आलीशान होटलों की सुविधाओं और कैसिनो के चक्कर में फंस गए तो आप मकाऊ की आबोहवा से अपरिचित रह जाएंगे। आलीशान होटलों में न तो जमीन दिखती है और न आकाश। हर प्राचीन शहर की तरह मकाऊ की अपनी खूबियां हैं, जिन्हें शहर में घूम कर ही समझा और महसूस किया जा सकता है। चंद डालर बचाने की कोशिश में किसी शहर की धड़कन को सुनने से महरूम रहने की गलती न करें। मकाऊ जैसे छोटे शहर को आप दो-तीन दिनों में आराम से देख-सुन सकते हैं।
बेहतर तरीका है कि मकाऊ पर्यटन विभाग की बसें ले लें या फिर जिस होटल में ठहरें हों, वहां से निजी व्यवस्था कर लें। दूसरा आसान तरीका है कि किसी भी कोने से टैक्सी लेकर शहर के मध्य में आ जाएं और फिर नक्शे की मदद से पैदल घूमें। यकीन करें पैदल घूमते हुए आप शहर के रंग, गंध और स्वाद को अच्छी तरह महसूस कर सकेंगे। सेनाडो स्क्वॉयर के पास उतर जाएं तो ऐतिहासिक इमारतों, वास्तु और भग्नावशेषों के साथ आज के शहर को भी देख सकते हैं। यह मकाऊ का मध्यवर्गीय इलाका है। सड़क के किनारे बने फूड स्टाल, बेकरी, किराना और कपड़ों की दुकानों से कुछ खरीद कर आप अपनी यादें समृद्ध कर सकते हैं। शाकाहारी होने पर थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन अगर आप मांसाहारी हैं तो मकाऊ की खास व्यंजन विधि के जायके से खुद को वंचित न रखें।
विशेष व्यंजन शैली मैकेनिज
मकाऊ की विशेष व्यंजन शैली है, जिसे मैकेनिज कहते हैं। यह चीनी, पुर्तगाली, भारतीय और अफ्रीकी पाक कला का स्वादिष्ट मिश्रण है। चीनी खाद्य पदार्थ, भारतीय मसाले और बनाने की पुर्तगाली विधि से एक नया स्वाद तैयार हो गया है। याद रखें कि इस व्यंजन शैली का आनंद सिर्फ मकाऊ में ही उठा सकते हैं।
2049 तक मकाऊ आज की ही प्रशासनिक स्थिति में रहेगा। उसके बाद संभव है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी यहां कुछ बदलाव करे। फिलहाल यहां की मुक्त अर्थव्यवस्था से लाभ उठाने के लिए विदेशी निवेशक धन लगा रहे हैं। मुख्य रूप से कैसिनो और होटल व्यवसाय में ही ज्यादा निवेश है। उधर भारत और चीन के बीच व्यापार बढ़ने से चीन में लाखों भारतीयों का आना-जाना लगा रहता है। तफरीह के लिए उनमें से कई मकाऊ आते हैं और वे कैसिनो में अपना भाग्य आजमाते हैं।

शिलांग: पूरब का स्कॉटलैंड


शिलांग: पूरब का स्कॉटलैंड

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लांग अब मेघालय की राजधानी है। एक समय था जब पूर्वोत्तर के सातों राज्यों की राजधानी शिलांग हुआ करती थी। तब इसे नेफा प्रांत के नाम से जाना जाता था। पर 1972 में नेफा सात राज्यों में विभाजित हो गया और शिलांग सिर्फ मेघालय की राजधानी बना। भौगोलिक रूप से मेघालय सात जिलों में बंटा हुआ है और यहां तीन जनजाति के लोग पाए जाते है-खासी, गारो और जयंतिया। मेघालय में ईस्ट, वेस्ट और साउथ गारो हिल्स की पहाडि़या तुरा के आसपास हैं जो गारो जनजाति के रूप में पहचानी जाती है। जयंतिया लोग जयंतिया हिल्स में पाए जाते हैं।
ईस्ट खासी हिल्स शिलांग का हिस्सा है और यहां पर खासी जनजाति के लोग बहुतायत में पाए जाते हैं। इन तीनों ही जनजातियों की एक प्रमुख विशेषता है कि ये मातृसत्तात्मक हैं। यानि वंश लड़कियों से चलता है और विरासत का हस्तांतरण भी मां से बेटी को ही होता है। यहां के पुरुष शादी के बाद पत्नी के घर रहते हैं। यहां के लोग अपनी भाषा बोलते हैं और अंग्रेजी भी जानते हैं। इन जनजातियों में ईसाई धर्म का काफी प्रभाव देखने को मिलता है।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर 5000 फुट की ऊँचाई वाला पहाड़ी स्थल शिलांग मेघालय के अन्य स्थानों से बिल्कुल अलग हैं। शिलांग में स्काटलैंड की पहाडि़यों से काफी समानता पाई जाती है इसीलिए इस शहर को ‘पूर्व का स्काटलैंड’ भी कहा जाता है। यह जगह, यहां के लोग, यहां के फूल-पौधे, यहां की वनस्पतियां, यहां की जलवायु सारी चीजें मिलाकर शिलांग को एक आदर्श विश्राम व पर्यटक स्थल बनाती हैं। शिलांग में पर्यटकों के लिए अच्छे होटल, खेल सुविधाएं, मछली पकड़ने, पहाड़ों पर पैदल चलने व हाईकिंग की भी सुविधाएं हैं। शिलांग शहर में और आसपास कई दर्शनीय स्थान हैं।
कुछ प्रमुख पर्यटक स्थल इस प्रकार हैं जिन्हें शिलांग जाने पर अवश्य देखना चाहिए:
वाडर्स लेक
शिलांग में एक खूबसूरत सी झील है जिसे वाडर्स लेक के नाम से जाना जाता है। यह शहर के बीचोंबीच है। इस झील का पानी इतना साफ है कि अंदर से तैरती मछलियां नजर आती हैं। यहां पर नौका विहार कर सकते हैं। इससे साथ ही जुड़ा बोटैनिकल गार्डन भी अवश्य देखें। यहां पर रंगबिरंगी चिडि़यों मन को मोह लेती हैं।
लेडी हैदरी पार्क व मिनी जू
यह पार्क भी शिलांग शहर में ही है। इस पार्क का नाम अकबर हैदरी की पत्नी के नाम पर रखा गया है। बच्चों के लिए यहां पर एक मिनी जू भी है साथ ही एक खूबसूरत झरना और स्वीमिंग पूल भी। साथ ही एक रेस्तरां भी है जहां पर्यटकों के लिए शाम को कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
पोलो ग्राउंड
शिलांग में पोलो ग्राउंड अपनी एक अलग ही विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर तीर का खेल खेला जाता है। इस खेल के जरिये खासी जनजाति के लोग आज भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े प्रतीत होते हैं। इस खेल के लिए लाटरी की तरह टिकट खरीदे जाते हैं और खासी आरचरी एसोसिएशन के तीरंदाज एक बांस के टार्गेट पर चार मिनट में 1500 तीर छोड़ते हैं जिसके तीर निशाने पर लगते हैं वे गिने जाते हैं और वही नंबर सट्टेबाजी में खोला जाता है। इसका जन्म प्राचीन जनजातीय खेलों से हुआ हैं।
शिलांग गोल्फ कोर्स
यह भी शिलांग शहर में है और भारत का तीसरा सबसे बड़ा और सबसे पुराना 18 होल का गोल्फ कोर्स है। इसको पूर्व का ‘ग्लैनईगल’ कहा जाता है।
मेघालय स्टेट म्यूजियम
शिलांग जाने पर स्टेट म्यूजियम अवश्य देखना चाहिए क्योंकि यहां पर मेघालय राज्य के लोगों के सांस्कृतिक जीवन और मानवजातीय अध्ययन से जुड़ी वस्तुएं रखी हुई है। इस संग्रहालय के ठीक सामने सबसे पुराना सेंट कैथोलिक चर्च भी है।
शिलांग से कुछ दूरी वाले दर्शनीय स्थान
स्वीट फाल
शिलांग से आठ किलोमीटर दूर हैप्पी वैली के पास यह स्थित है। इसको देख कर ऐसा आभास होता है कि पेंसिल के आकार के एक मोटे वाटर पाईप से 200 फुट नीचे पानी गिर रहा है। यह दिनभर की आउटिंग और पिकनिक के लिए अच्छी जगह है।
शिलांग पीक
अपने नाम के अनुकूल यह पीक शिलांग से दस किलोमीटर दूर है और 1960 मीटर ऊंची है। यह चोटी एक पर्यटन स्थल भी है और हर साल बसंत के समय यहाँ के निवासी शिलांग के देवता की पूजा करते हैं। शाम के समय शहर की रोशनी यहां से देखने पर ऐसी लगता है मानो जमीन पर ही ‘तारा मंडल’ आ गया है। साफ मौसम में इस चोटी से हिमालय की श्रंखलाएं और बांग्लादेश के मैदानी इलाके भी साफ दिखाई देते हैं।
चेरापूंजी और एलीफेंटा फाल
शिलांग जाकर अगर चेरापूंजी नहीं गए तो आपने कुछ नहीं देखा। पूरी दुनिया में सबसे अधिक बारिश यही पर होती है। यह शिलांग से 56 किलोमीटर दूर पर है। यहां जाने के लिए शिलांग से सवेरे निकलकर शाम तक घूमकर लौटा जा सकता है।
चेरापूंजी जाने वाले रास्ते में ही एलीफेंटा फाल पड़ता है। इस तरह एक दिन में यह दोनों जगह देखी जा सकती हैं। एलीफेंटा फाल शिलांग से बारह किलोमीटर दूर है। इस झरने को पास से देखने के लिए एक लकड़ी के पुल से होकर सीढि़यों से नीचे तक जाना होता है।
चेरापूंजी में जब आप पहुंचेंगे तो आपको वहां झरनों का शोर सुनाई देगा। इस झरने को सेवन सिस्टर फाल के नाम से जाना जाता है। चेरापूंजी में ही एक व्यू प्वाइंट है जहां से खुले मौसम में बांग्लादेश का हरा-भरा मैदानी इलाका दूर-दूर तक साफ दिखाई देता है। एक तरफ मेघालय राज्य की पहाड़ी इलाका और दूसरी तरफ बांग्ला देश का मैदानी भाग दोनों मिलाना एक मनोरम दृश्य उत्पन्न करते हैं। लेकिन यह दृश्य बेहद दुर्लभ है क्योंकि ज्यादातर यह बादलों से इतना घिरा रहता है कि आप अपने पास खड़े व्यक्ति को भी नहीं देख पाएंगें। यहां पर संतरे के बाग हैं और शुद्ध शहद भी मिलता है।
रानीकोर
यदि आप मछली पकड़ने की इच्छा रखते हैं तो रानीकोर जाएं। यह दर्शनीय स्थल शिलांग से 140 किलोमीटर दूर है।
डावकी
बोटिंग का शौक हो और प्रकृति को बिल्कुल नए अंदाज में देखना चाहते हैं तो शिलांग से 56 किमी. दूर डावकी जाएं। यह उमगोट नदी के पास स्थित है। यहां पर एक झूले वाला पुल है जिसके नीचे से डावकी नदी बहती है। यहां पर हर साल बोटिंग प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।
जाकरेम के गर्म पानी के सोते
शिलांग से 64 किलोमीटर दूर जाकरेम एक ऐसी जगह है जो ‘हेल्थ रिसांर्ट’ के तौर पर भी लोकप्रिय है। यहां पर गंघक के पानी का सोता है जो कई बीमारियों को दूर करने वाला माना जाता है। यह चट्टानों से घिरा एक सुंदर स्थान है।
उनियाम (बारापानी)
शिलांग से 17 किमी. दूर बहुत विशाल पानी का भंडार हैं जो एक वाटर स्पो‌र्ट्स कांप्लेक्स व पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। यहां पर सुंदर लेक और नेहरू पार्क है। बोटिंग की भी सुविधा है। यहां पर तैरता हुआ एक रेस्तरां भी है। यहां पर वाटर स्पोर्टस जैसे रोइंग बोट, पैडल बोट, पानी का स्कूटर, स्पीड बोट जैसी विशेष सुविधाएं पर्यटकों का मन लुभाती हैं।
उपरोक्त स्थानों के अलावा घूमने के और भी कई स्थान है जैसे मावाफ्लांग सेक्रेड ग्रोव, मैरंग, आदि। शिलांग शहर में आप पोलिस बाजार, बड़ा बाजार आदि घूम सकते हैं और यहीं खरीदारी करना भी उपयुक्त होगा। बड़ा बाजार में आपको शुद्ध शहद, हाथ के बुने शाल, तीर कमान, कुछ स्थानीय मसाले, बांस से बनी वस्तुएं आदि मिल जाएंगे।
कैसे पहुंचे
कोलकाता से सप्ताह में छह दिन एलायंस एयर की उड़ान उमरोई एयरपोर्ट जाती है जो शिलांग से 35 किलोमीटर दूर है। देश के अन्य क्षेत्रों से गुवाहाटी एयरपोर्ट आया जा सकता है। यहां से शिलांग सौ किलोमीटर दूर है।
गुवाहाटी तक रेलमार्ग द्वारा देश के मुख्य शहरों से यहां आया जा सकता हैं। गुवाहाटी से शिलांग जाने के लिए बस, टैक्सी और हेलीकाप्टर की सुविधा उपलब्ध है।
मौसम
यहां का मौसम साल के बारह महीनों खुशनुमा रहता है। अधिकतम तापमान अप्रैल-मई के महीने में 28 डिग्री सेल्शियस और न्यूनतम दिसंबर महीने में 2 डिग्री सेल्शियस तक पहुंच जाता है।
त्योहार
यहां के काफी लोगों ने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया है इसलिए क्रिसमस बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। इसके अलावा दो प्रमुख जनजातीय त्योहार हैं-एक ‘शाद सुक माइनसीम’ यानि खुशी का डांस जो अप्रैल महीने में बाइकिंग ग्राउंड शिलांग में तीन दिन तक मनाया जाता है। इस त्योहार में कोई धार्मिक रस्म नहीं होती और न ही कोई बलि चढ़ाई जाती है। दूसरा है ‘नोंगक्रेम डांस’ जो खासी जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। पांच दिन तक चलने वाले इस त्योहार में बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। यह शिलांग से पंद्रह किलोमीटर दूर मनाया जाता है। इसके अलावा ‘मेघालय टूरिज्म’ की ओर से पर्यटकों के लिए ‘शिलांग ऑटम फेस्टिवल’ नवंबर माह में हर साल आयोजित किया जाता है। शिलांग व उसके आस-पास की जगहों को देखने के लिए टैक्सी, पैकेज दूर आदि उपलब्ध हैं।

List of politicians of Indian descent


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See also British Asians in politics of the United Kingdom

[edit]Singapore

  • The late CV Devan Nair, Singapore's third President (1981-1985), father of the modern trades union movement in Singapore.
  • Sellapan Ramanathan, President of Singapore since 1999, former head of Singapore's intelligence unit and Ambassador to the United States, amongst other senior positions in the civil service.
  • S Rajaratnam, former Senior Minister, Deputy Prime Minister and Minister for Foreign Affairs, Labour and Culture. Co-founder of the Peoples Action Party and Association of South East Asian Nations. Author of the Singapore Pledge and one of the pioneer leaders of modern Singapore.
  • S Jayakumar, Deputy Prime Minister, Minister for Law and co-ordinating Minister for Security. Former Foreign Minister and ambassador to the United Nations, and Dean of the Law School in Singapore.
  • S Dhanabalan, Chairman of Temasek Holdings and DBS Bank, former Minister of National Development, Trade and Industry and Foreign Affairs. Tipped by Singapore's first Prime Minister Lee Kuan Yew as one of the four men he considered as a possible successor.
  • Tharman Shanmugaratnam, Minister of Education and former head of Singapore's defacto central bank.
  • Vivian Balakrishnan, Minister of Community Development, Youth and Sports. Former CEO of Singapore General Hospital.
  • Dr.Balaji Sadasivan, Junior Minister.
  • J. B. Jeyaretnam, former opposition leader, and the first person to break the PAP monopoly in parliament in 1984. A former magistrate.
  • James Gomez, senior leader in the main opposition party (the Workers Party) and founder of 'Think Centre', a political NGO.

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